प्रबंधन

अध्यक्ष (डॉ. मुक्ता), आचार्य रामचंद्र शुक्ल साहित्य शोध संस्थान

डॉ. मुक्ता हिंदी की सुप्रसिद्ध कथाकार हैं। आपकी कविता, कहानी, निबंध, जीवनी, एवं संपादित बीस पुस्तकें प्रकाशित हैं। रचनाओं के अनुवाद उड़िया, बांग्ला, मराठी, उर्दू, पंजाबी, अंग्रेजी भाषाओं में हुए हैं। बांग्ला में कहानियों की अनुवादित पुस्तक 'शहर जोल छे' चर्चित रही है। दो कहानियाँ मैंगलोर विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल, कविता एन .सी .ई आर .टी की पुस्तक बसंत भाग तीन में शामिल। इग्नू एम .ए अनुवाद की पुस्तक में पाठ शामिल। कहानियों पर एम. फिल , पी एच डी। अनेक देशों की साहित्यिक यात्रायें। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा आधा कोस ,कहानी संग्रह पुरस्कृत, चुनी हुई कहानियाँ, मिस्र में सिंधु देवी रथ पुरस्कार से सम्मानित, संसदीय हिंदी परिषद द्वारा राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान, हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा साहित्य महामहोपाध्यय उपाधि, विश्व हिंदी साहित्य परिषद द्वारा इटली में साहित्य रत्नाकर एवं मास्को में साहित्य शलाका सम्मान एवं अन्य अनेक सम्मानों से विभूषित हैं।

डॉ मुक्ता विगत चालीस वर्षों से संस्थान से जुड़ी हैं। संस्थान की पत्रिका 'नया मानदंड' की संयोजक सम्पादक रही हैं। संस्थान की सह-निदेशक रही हैं। सम्प्रति संस्थापक सदस्य हैं और संस्थान की अध्यक्ष हैं। उल्लेखनीय है कि आपने आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की जीवनी कुसुम चतुर्वेदी जी के साथ संयुक्त रूप से लिखी है जो प्रकाशन विभाग दिल्ली से प्रकाशित है। आचार्य शुक्ल की प्रसिद्ध कृति 'हिंदी साहित्य का इतिहास' (अमन प्रकाशन, कानपुर) की भूमिका एवं दूरदर्शन के राष्ट्रीय नेटवर्क के लिये चर्चित फिल्म 'आचार्य रामचंद्र शुक्ल' का निर्माण किया है।

मंत्री (मंजीत चतुर्वेदी), आचार्य रामचंद्र शुक्ल साहित्य शोध संस्थान

मंजीत चतुर्वेदी बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर एवं हिंदी रंगमंच से जुड़े एक जाने-माने रचनाकार हैं। १९७० के दशक में मंजीत चतुर्वेदी ने अजय मिश्र के साथ 'काशी के डोम राजा', 'काशी की वेधशाला', 'बनारसी रेजा', 'सन्नाटा शहर में या साहित्य में' आदि लेखों से काशी के सांस्कृतिक/साहित्यिक परिवेश की पड़ताल की। धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, नवनीत साप्ताहिकों से शुरू हुई उनकी यात्रा प्रवक्ता में छपी कहानी 'क़स्बा', कल्पना में प्रकाशित 'यह बनारस है' लेखों से होती हुई आज भी जारी है। सम्प्रेषण में छपी आत्मकथा का अंश 'तड़ित की तरह कौंधती स्मृति' को अनेक पत्र-पत्रिकाओं ने पुनः-प्रकाशित किया है। आचार्य शुक्ल पर दैनिक हिंदुस्तान में छपा उनका लेख 'उदित हुए तुम कलाधर' बहु-प्रशंसित है। कादम्बनी ने इनके द्वारा लिखे नाटक 'कृष्ण का आखिरी दिन' के कुछ दृश्य प्रकाशित किये है।

महामना मदन मोहन मालवीय के जीवन पर आधारित उनके चार नाटक क्रमशः 'गंगा के महामना', 'मालवीय संवाद', एवं 'धारा के विरुद्ध समय के साथ' अनेक शहरों में मंचित हो चुके है। मंजीत चतुर्वेदी द्वारा लिखित नाटक 'महामना द कॉन्शियन्स कीपर' आठवें थिएटर ओलिंपिक (अहमदाबाद) हेतु नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा द्वारा प्रस्तुत किया गया। जनवरी २०१९ में उत्तर प्रदेश संस्कृति मंत्रालय द्वारा प्रयागराज कुम्भ में इसका मंचन किया गया। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में मंजीत चतुर्वेदी प्रोफेसर और डीन थे। तदोपरांत डॉ. आंबेडकर चेयर के पद पर रहते हुए २०२२ में अवकाश ग्रहण किया। इनके द्वारा लिखित एब्सर्ड नाटक 'फाकामस्ती' अभी-अभी छपा है।